भारतीय राजनीति में पार्टियां जातिगत वोटों के लाभ के लिए हिन्दू धर्म ग्रंथों को निशाने पर ले रही है । जिसको लेकर सभी पार्टियों के बड़े नेता अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने श्रीरामचरितमानस के एक दोहे को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से विधानसभा में प्रश्न पूछने की बात कही थी।
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बसपा प्रमुख मायावती ने भी इस विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है….
मायावती ने कहा कि ” देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का श्रीरामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे।
इतना ही नहीं, देश के अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी दलितों, आदिवासियों व ओबीसी समाज के शोषण, अन्याय, नाइन्साफी तथा इन वर्गों में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों आदि की उपेक्षा एवं तिरस्कार के मामले में कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी भी कोई किसी से कम नहीं।”
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क्यूं हो रहा रामचरित मानस पर विवाद?
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ बाबा तुलसीदास द्वारा रचित की एक चौपाई जिसमे शूद्र शब्द का प्रयोग ताड़ना के साथ किया गया है जिसको लेकर कई पार्टियां राजनीति कर रही है ।
ढोल गंवार शूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥
विवाद करने वाले नेताओं का कहना है कि इस दोहे में शूद्र पशु नारी का अपमान किया गया तथा उन्हें प्रताड़ना का अधिकारी बताया है । सनातन धर्म के संतों एवं भाजपा नेताओं में इस विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है उनका कहना है की श्रीरामचरितमानस के इस दोहे पर विवाद करने वाले नेताओं ने इस दोहे का अर्थ मात्र राजनीतिक लाभ के लिए अपनी सुविधा अनुसार निकाला है ।
इस दोहे में ताड़ना शब्द का अर्थ ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सबके लिए अलग अलग है।