You are currently viewing लोहड़ी 2023 जाने क्यूं इतना खास है ये पर्व महादेवी की पूजा विधि

लोहड़ी 2023 जाने क्यूं इतना खास है ये पर्व महादेवी की पूजा विधि

लोहड़ी को हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। आज 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। पुराने समय में ये त्योहार हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली आदि इलाकों में मनाया जाता था, लेकिन अब यह पूरे देश में लोग मनाने लगे हैं। इस त्यौहार में नई फसलों की पूजा की जाती है और अग्नि जलाकर गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, लावा, भुट्टा आदि अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार व आसपास के सभी लोग मिलकर अग्नि की परिक्रमा करते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं, गिद्दा भंगड़ा करते हैं और इस पर्व को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। लोहड़ी के पर्व की महत्ता एवम परंपरा को समझने के लिए इसके अर्थ को समझना होगा। लोहड़ी तीन अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें ‘ल’ का अर्थ है लकड़ी ‘ओह’ का अर्थ है गोहा यानी सूखे उपले और ‘ड़ी’ का मतलब यहां रेवड़ी से है। इसलिए लोहड़ी पर उपलों और लकड़ी की मदद से अग्नि जलायी जाती है। चलिए आपको बताते है की लोहड़ी पर अग्नि क्यों जलाई जाती है और इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व क्या है।

लोहड़ी

लोहड़ी के दिन अग्नि का महत्व

लोहड़ी का त्यौहार सूर्यदेव और अग्नि को समर्पित है। इस पर्व में लोग नई पैदा हुई फसलों को अग्निदेव को समर्पित करते हैं। शास्त्रों के अनुसार अग्नि के जरिए ही सभी देवी देवता भोग ग्रहण करते हैं। माना जाता है की मनाने के दौरान जिन भोज्य पदार्थों का उपयोग होता है वो सभी देवताओं तक भी पहुंच जाता है । मान्यता है की सूर्यदेव और अग्निदेव को फसल चढ़ा कर उनके प्रति आभार प्रकट किया जाता है और उनसे आने वाले समय में भी अच्छी फसल पैदावार, सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

और भी पढ़ें.. शाहरुख खान पर टूटा मुसीबतों का पहाड़ फिर लगा चोरी का आरोप ।

लोहड़ी का पर्व वैसे तो मूलतः प्रकृति पूजा से ही संबंधित है। पंजाब में इस पर्व का धार्मिक महत्व है। लोहड़ी के दिन शाम लोहड़ी जलाकर अग्नि की सात बार परिक्रमा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान जिसके भी घर पर खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र होंगे। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते है।

लोहड़ी का सामाजिक महत्व

लोहड़ी त्योहार का धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक रूप से भी बहुत महत्व है।इस पर्व को लेकर लोगों में खास उत्साह देखते ही बनता है। इस दिन लोहड़ी के लोकगीत गाए जाते हैं। इस दिन परम्परागत वेशभूषा के साथ पुरुष और स्त्रियां ढोल की थाप पर लोकप्रिय भांगड़ा और गिद्दा करती हैं। पंजाब और उत्तर भारत में नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व है। नवविवाहित जोड़ा लोहड़ी की अग्नि की सातबर परिक्रमा करके फूले, रेवड़ी और मूंगफली लोहड़ी की अग्नि में समर्पित करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं। दुल्ला भट्टी के गीत गाती हैं। कहते हैं महराजा अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी एक लुटेरा थालोहड़ी लेकिन वह हिंदू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचे जाने का विरोधी था। उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था। गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी पर्व पर अग्नि का विशेष महत्व होता है। ये अग्नि पवित्रता व शुभता का प्रतीक होती है। ऐसे में इस दिन अग्नि के साथ महादेवी की पूजा करनी चाहिए। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। लोहड़ी पर अग्निदेव और महादेवी की पूजा से जीवन का अंधकार दूर होता है। साथ ही बल, बुद्धि व ज्ञान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि लोहड़ी पर महादेवी के भोग लगाई हुई रेवड़ियों को गरीब कन्याओं को खिलाना चाहिए। इससे घर में अन्न की कमी नहीं होती। साथ ही लोहड़ी के दिन लाल कपड़े में गेंहू बांधकर किसी गरीब ब्राह्मण को दान देने से आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।

Leave a Reply